राजा भगीरथ की कहानी

Raja Bhagirath story in Hindi

" राजा भगीरथ जी की कहानी जानने से पहले आपको हम यह बताना चाहते हैं की सैनी जाति में राजा भगीरथ के वंशज पाए जाते हैं जिन्हें भागीरथी सैनी कहते हैं , सैनी जाति के इन लोगों का कहना है कि इनका गोत्र भागीरथ है और यह भागीरथी कुल से है ". 

दिलीप के पुत्र का नाम भगीरथ था। भगीरथ अपने पिता के इच्छा से अवगत थे, इसलिए वह अपने पिता की इच्छाओं को पूरा करने के लिए बहुत कम उम्र में हिमालय चले गए। भगीरथ गोकर्ण तीर्थ में जाकर घोर तपस्या करने लगे। ब्रह्मा के प्रसन्न होने पर उन्होंने दो वर माँगे,एक तो यह कि गंगा जल चढ़ाकर भस्मीभूत पितरों को स्वर्ग प्राप्त करवा पायें और दूसरा यह कि उनको कुल की सुरक्षा करने वाला पुत्र प्राप्त हो। 

गंगा नदी को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने कई वर्षों तक प्रार्थना की। अंततः, वह नदी को प्रसन्न कर सका और वह देवी के रूप में भगीरथ के सामने आई। जल्द ही, गंगा नदी पृथ्वी पर बहने के लिए तैयार हो गई। हालाँकि, गंगा बहुत शक्तिशाली थी और इसे रोकने के लिए कोई नहीं होता तो यह नदी बहुत जबरदस्ती बहती। 

इसलिए इसे किसी ऐसे ही बलवान की जरूरत थी जो स्वर्ग से गिरने वाली नदी का बेग़ ( तेज़ प्रवाह ) रोक ले। गंगा नदी चाहती थी कि इस काम के लिए भगवान शिव से संपर्क किया जाए। 

भगवान शिव के बारे में सुनकर, अब भगीरथ शिव का ध्यान करने लगे। भगवान शिव भगीरथ की प्रार्थना से प्रसन्न हुए और उनके सामने प्रकट हुए। शंकर ने प्रसन्न होकर गंगा को अपने मस्तक पर धारण किया। इसके बाद, उन्होंने गंगा से प्रार्थना की और उनसे पृथ्वी पर प्रवाहित होने का अनुरोध किया। 

गंगा का अभिमान उनकी शक्ति थी और यह नहीं जानती थी कि भगवान शिव उनके बल का सामना कैसे करेंगे। शिव गंगा के विचारों को समझ सकते थे और इसलिए उन्होंने अपनी सारी शक्ति लगा दी और बड़े जोश के साथ इसका सामना किया। शिव ने यह जानकर उन्हें अपनी जटाओं में ऐसे समा लिया कि उन्हें वर्षों तक शिव-जटाओं से निकलने का मार्ग नहीं मिला। 

भगीरथ ने फिर से तपस्या की। शिव ने प्रसन्न होकर उसे बिंदुसर की ओर छोड़ा। वे सात धाराओं के रूप में प्रवाहित हुईं। ह्लादिनी, पावनी और नलिनी पूर्व दिशा की ओर; सुचक्षु, सीता और महानदी सिंधु पश्चिम की ओर बढ़ी। 

सातवीं धारा राजा भगीरथ की अनुगामिनी हुई। राजा भगीरथ गंगा में स्नान करके पवित्र हुए और अपने दिव्य रथ पर चढ़कर चल दिये। गंगा उनके पीछे-पीछे चलीं। मार्ग में अभिमानिनी गंगा के जल से जह्नुमुनि की यज्ञशाला बह गयी। 

क्रुद्ध होकर मुनि ने सम्पूर्ण गंगा जल पी लिया। इस पर चिंतित समस्त देवताओं ने जह्नुमुनि का पूजन किया तथा गंगा को उनकी पुत्री कहकर क्षमा-याचना की। जह्नु ने कानों के मार्ग से गंगा को बाहर निकाला। तभी से गंगा जह्नुसुता जान्हवी भी कहलाने लगीं। भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर गंगा समुद्र तक पहुँच गयीं। 

भगीरथ उन्हें रसातल ले गये तथा पितरों की भस्म को गंगा से सिंचित कर उन्हें पाप-मुक्त कर दिया। ब्रह्मा ने प्रसन्न होकर कहा—“हे भगीरथ, जब तक समुद्र रहेगा, तुम्हारे पितर देववत माने जायेंगे तथा गंगा तुम्हारी पुत्री कहलाकर भागीरथी नाम से विख्यात होगी। साथ ही वह तीन धाराओं में प्रवाहित होगी, इसलिए त्रिपथगा कहलायेगी।’’ 

ऐसा कहा जाता है, कि गंगा को लाने के पश्चात् और अपने पितामहों की धार्मिक क्रिया करने के पश्चात् बहुत दिनों तक महाराजा भगीरथ ने अयोध्या में राज्य किया। इससे स्पष्ट है कि उन्होंने गंगा की धारा अपने राज्य के हित के लिए बहायी। वाल्मीकि ने अपनी रामायण में उस घटना का बहुत रमणीक वर्णन किया है। आगे-आगे भगीरथ का रथ चला आ रहा है और पीछे-पीछे गंगा की धारा वेग से बहती चली आ रही है। 

भगीरथ एक महान राजा ही नहीं थे, महान व्यक्ति भी थे, उन्होंने मानवता के हित के लिए सब कुछ किया। चिरकाल तक मानवता उनकी ऋणी रहेगी। 

Copyright © 2023 - 2028 Saini Caste®. All rights reserved.